मानव विकास की अवस्थाएं | Growth And Development

Join WhatsApp Group Join Now
Join Telegram Channel Join Now

मानव विकास की अवस्थाएं (Growth And Development)। हम सभी जानते हैं कि मानव का विकास निश्चित अवस्था के अनुसार त्वरित गति से चलता रहता है। विकास की एक अवस्था दूसरी अवस्था से भिन्न होती है। प्रत्येक अवस्था के अपने कुछ लक्षण होते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इन्हीं लक्षणों को पहचानने के लिए मानव विकास को विभिन्न अवस्थाओं में बाटा है-

मानव विकास की अवस्थाएं

अनुक्रम

मानव विकास की अवस्थाएं

मानव विकास की अवस्थाओं को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-
1. गर्भावस्था
2. शैशवावस्था – जन्म से 5/6 वर्ष
3. बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष
4. किशोरावस्था – 12 से 18 वर्ष
5. प्रौढ़ावस्था – 18 वर्ष से ऊपर

मानव विकास की अवस्थाओं से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य-

(A) जन्म के समय बालक का भार 3.2 किलोग्राम होता है।
(B) जन्म के समय बालकों की लंबाई 51.5 सेंटीमीटर होती है।
(C) जन्म के समय लड़कियों का भार 3 किलोग्राम होता है।
(D) जन्म के समय लड़कियों की लंबाई 50 सेंटीमीटर होती है।
(E) शैशवावस्था को बालकों की आयु कहते हैं।
(F) बाल्यावस्था को लड़कियों की आयु कहते हैं।

शैशवावस्था किसे कहते हैं?

जन्म से 6 वर्ष की अवस्था शैशवावस्था कहलाती है।

शैशवावस्था की परिभाषाएं 

फ्रायड के अनुसार,” बालक को भविष्य में क्या बनना है इसका निर्धारण इन्ही 4 या 5 वर्षों में हो जाता है।”

स्ट्रेंग के अनुसार ,” जीवन के प्रथम 2 वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है।”
गेसल के अनुसार,” बालक प्रथम 6 वर्षों मेें बाद के 12 वर्षों से दोगुना सीख लेता है।”

शैशवावस्था की विशेषताएं-

1. तीव्र शारीरिक विकास
2. तीव्र मानसिक विकास
3. सीखने में तीव्रता
4. दोहराने की प्रवृत्ति

5. जिज्ञासा की प्रवृत्ति

6. स्व प्रेम की भावना
7. काम प्रवृत्ति

तीव्र शारीरिक विकास

 

शैशवावस्था में शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है। जन्म के समय लड़कियों का भार लड़कों की अपेक्षा अधिक और लंबाई लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की अधिक होती है। जन्म के समय किसी शिशु का भार 3 से 3.2 किलोग्राम होता है तथा लंबाई 50 से 51.5 सेंटीमीटर होती है। जन्म के समय शिशु में हड्डियों की कुल संख्या 270 होती है। शिशु के मस्तिष्क की लंबाई, शरीर की लंबाई की लगभग 1/4 होती है। जन्म के समय मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है यह यह भार 2 वर्षों में दुगना एवं शैशवावस्था के अंतिम समय तक 1260 ग्राम हो जाता है।

तीव्र मानसिक विकास

 

मानसिक विकास से तात्पर्य मानसिक शक्ति का उदय होना, पुष्ट होना और धीरे-धीरे चरम सीमा तक पहुंचने के साथ-साथ व्यक्ति में उस योग्यता का विकास होना है जिसके द्वारा वह वातावरण की परिस्थितियों से सामंजस्य एवं अनुकूलन बनाना सीखता है। यह प्रक्रिया इतनी जटिल होती है कि इसकी प्रकार्यात्मक क्षमता का वर्णन करना असंभव हो जाता है।

सीखने में तीव्रता

इस अवस्था का बालक मैं सीखने की तीव्र लालसा होती है। बालक में हंसने ,मुस्कुराने ,किसी वस्तु को पकड़ने का प्रयास करने ,वस्तुओं को ध्यान से देखने तथा तेज प्रकाश में क्रोध को व्यक्त करने जैसे गुण विकसित होने लगते हैं।

दोहराने की प्रवृत्ति

बाल्यावस्था का बालक बड़ों के द्वारा किए गए कार्यों को दोहराने का प्रयास करता है। बालक जिस प्रकार अपने घर के सदस्यों को देखता है वैसा ही अनुसरण करता है। बालक किसी खिलौने या वस्तु को पकड़कर मुंह में डालता है ,विभिन्न प्रकार के स्वरों को निकालता है और बिना सहारे के बैठने का प्रयास करता है।

जिज्ञासा की प्रवृत्ति

शैशवावस्था के बालक बड़े जिज्ञासु होते हैं। बालक के संपर्क में वस्तुओं या खिलौनों को लाने पर वह उन वस्तुओं को दांतों से काटकर खिलौने के विभिन्न अंगों को अलग करके अपनी जिज्ञासा को संतुष्ट करता हैं।

स्व प्रेम की भावना

शैशवावस्था के बालक में स्व प्रेम की भावना पाई जाती है। जिसे नार्सीलिज्म कहा जाता है। अर्थात इस अवस्था के बालक चाहते हैं कि उनके मम्मी पापा ,भाई-बहन सिर्फ उसी को प्रेम करें किसी अन्य बालक को नहीं।

काम प्रवृत्ति

 

फ्राइड तथा अन्य मनोविश्लेषण वादियों के अनुसार शैशवावस्था में काम प्रवृत्ति अत्यंत प्रबल पाई जाती है परंतु शिशु वयस्कों के समान काम प्रवृत्ति ना करके मां के स्तनपान करके अथवा हाथ पैर के अंगूठे को चूस कर काम प्रवृत्ति को संतुष्ट करता है।
शैशवावस्था के बालक में ओडिपस भावना ग्रंथि के कारण उसका झुकाव अपनी मां की तरफ होता है जिसे मातृप्रेम कहा जाता है तथा लड़कियों का झुकाव इलेक्ट्रा भावना ग्रंथि के कारण अपने पिता की तरफ होता है जिसे पितृप्रेम कहते हैं।

बाल्यावस्था किसे कहते हैं?

6 से 12 वर्ष की अवस्था को बाल्यावस्था कहते हैं। इस अवस्था को समझ पाना बहुत कठिन होता है क्योंकि विकास की दृष्टि से यह अवस्था जटिल अवस्था होती है। इस अवस्था में विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक सामाजिक व नैतिक परिवर्तन होते हैं इसलिए इस अवस्था को विकास का अनोखा काल कहा जाता है।

पूर्व बाल्यावस्था (6 से 9 वर्ष) को  खिलौनों की आयु कहते हैं, इस अवस्था में बालक औपचारिक शिक्षा प्रारंभ कर देता है।

उत्तर बाल्यावस्था की अवधि 9 से 12 वर्ष होती है।

बाल्यावस्था को गंदी अवस्था तथा गिरोह की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है।

बाल्यावस्था की परिभाषाएं

कॉल एवं ब्रूस के अनुसार,” बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल है।”

राॅस के अनुसार,” बाल्यावस्था छद्म परिपक्वता का काल है।”

स्ट्रेंग के अनुसार,” ऐसा शायद ही कोई खेल हो जिसे 10 वर्ष के बालक ना खेलते हों।”

बाल्यावस्था की विशेषताएं

1. शारीरिक तथा मानसिक विकास में स्थिरता

बाल्यावस्था में शारीरिक तथा मानसिक विकास में स्थिरता आने लगती है इसका कारण मांस पेशियों में दृढ़ता होती है। मस्तिष्क में परिपक्वता आने लगती है
रॉस महोदय इस अवस्था को मिथ्या परिपक्वता कहते हैं।

2. मानसिक योग्यता में वृद्धि

इस अवस्था में बालक दो वस्तुओं में स्पष्ट अंतर कर सकता है वह लकड़ी और कोयला तथा शीशा और पत्थर में अंतर बता सकता है छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन कर सकता है तथा साधारण समस्याओं के हल को खोज सकता है। इस अवस्था के बालक को सिक्कों का ज्ञान हो जाता है वह दिन तारीख तथा सप्ताह को बता सकता है किसी फिल्म को देखकर उसका वर्णन कर सकता है।

3. जिज्ञासा में प्रबलता

इस अवस्था के बालक में जिज्ञासा की प्रबलता पाई जाती है। अर्थात इस अवस्था का बालक विभिन्न वस्तुओं के संबंध में क्यों ,कब, क्या इत्यादि प्रश्नवाचक शब्दों के माध्यम से अपनी जिज्ञासा शांत करता है।

3. समूह की प्रवृत्ति

बाल्यावस्था का बालक किसी न किसी टोली का सदस्य बन जाता है वह अपने साथी बच्चों के साथ खेलता है तथा अपने साथी बच्चों के साथ विद्यालय जाता है। इस अवस्था के बालक में संग्रह करने की प्रवृत्ति पाई जाती है अर्थात इस अवस्था का बालक, वस्तुओं को इकट्ठा करना प्रारंभ कर देता है।

4. सामाजिक तथा नैतिक गुणों का विकास

बाल्यावस्था का बालक किसी समाज का हिस्सा बन जाता है समाज के हिस्सा बनने से बालक में सामाजिक तथा नैतिक गुणों का विकास होता है। बालक अपने बड़ों का अनुसरण करता है इससे बालक में शिष्टाचार जैसे गुण विकसित होते हैं। बालक अन्य व्यक्तियों को सम्मान देने लगता है।

5. रचनात्मक कार्यों में वृद्धि

बाल्यावस्था का बालक रचनात्मक कार्य करने लगता है जैसे चित्र बनाना, कागज के खिलौने बनाना, जहाज बनाना ,लकड़ी के खिलौने बनाना। वही बाल्यावस्था की लड़कियां संगीत, कला ,कताई -बुनाई तथा घर के कार्यों में रूचि लेने लगती हैं।

6. बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास

बाल्यावस्था का बालक स्वयं की दुनिया के साथ-साथ बाहरी दुनिया को भी महत्व देने लगता है। बालक अपने आस-पड़ोस के लोगों से मिलने, बोलने तथा खेलने में रुचि लेने लगता है।

किशोरावस्था किसे कहते हैं?

किशोरावस्था मानव विकास की अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था है इस अवस्था की अवधि सामान्यतया 12 से 18 वर्ष मानी जाती है इस अवस्था को मनोवैज्ञानिक तीन भागों में विभक्त करते हैं
1. प्राक् किशोरावस्था- 11 से 12 वर्ष या 12 से 14 वर्ष
2. प्रारंभिक किशोरावस्था- 14 से 17 वर्ष
3. उत्तर किशोरावस्था- 17 से 19 या 20 वर्ष

किशोरावस्था की परिभाषाएं

क्रो एंड क्रो के अनुसार,” किशोर ही वर्तमान की शक्ति और भावी आशा को प्रस्तुत करता है”।
स्टैनले हाल के अनुसार,” किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान तथा विरोध की अवस्था है”।

किशोरावस्था की विशेषताएं

1. प्रारंभिक किशोरावस्था में बालक का शारीरिक तथा मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।
2. यह अवस्था बाल्यावस्था की समाप्ति तथा प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था होती है इसलिए इस अवस्था को संधि काल की अवस्था भी कहते हैं।
3. इस अवस्था में संवेगों में उथल-पुथल तथा तनावों में रहने के कारण इस अवस्था को मनोवैज्ञानिक समस्यात्मक अवस्था भी कहते हैं।
4. किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाएं धीरे-धीरे परिपक्वता की ओर बढ़ने लगते हैं तथा किशोरावस्था की समाप्ति के बाद किशोर पूर्व परिपक्व व्यक्ति बन जाते हैं।
5. इस अवस्था के बालक क्रोध, घृणा, चिड़चिड़ापन आदि को नियंत्रित नहीं रख पाते जिसके कारण किशोरों को वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई होती है।
6. इस अवस्था का बालक कल्पना जगत में विचरण करता रहता है। इसी कारण वह दिवास्वप्न देखने लगता है। बालकों के कल्पना जगत में रहने की प्रवृत्ति साहित्य और गायन में प्रकट होती है। बालिकाओं में कल्पना शक्ति अधिक होती है।
7. इस अवस्था के बालक में वीर पूजा तथा वीर नायक की भावना का विकास होता है।
8. बाल्यावस्था के बालकों में समाज सेवा की प्रवृत्ति पाई जाती है।

हमारे अन्य महत्वपूर्ण लेख भी पढ़ें-

 

आशा है आप लोगों को यह पोस्ट”मानव विकास की अवस्थाएं| Growth And Development” अवश्य पसंद आई होगी। अगर हमारा यह छोटा सा प्रयास अच्छा लगा हो तो आपसे विनम्र निवेदन है कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें जिससे हमें मनोबल प्राप्त होगा और हम आपके लिए ऐसे ही ज्ञानवर्धक पोस्ट लाते रहेंगे। अगर आपके मन में कोई सुझाव या शिकायत है तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद।

Leave a Comment