Samaveshi Shiksha kya hai विशिष्ट आवश्यकता वाले बालक!! नमस्कार दोस्तों Exam Notes Find में आपका हार्दिक स्वागत है आज के इस पोस्ट में हम मनोविज्ञान विषय के अंतर्गत समावेशी शिक्षा से संबंधित सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे तो आइए शुरू करते हैं- Samaveshi Shiksha in hindi
समावेशी शिक्षा क्या है (Samaveshi Shiksha kya hai)
Samaveshi Shiksha या एकीकरण के सिद्धांत की ऐतिहासिक जड़ें कनाडा और अमेरिका से जुड़ी हुई है। समावेशी शिक्षा से तात्पर्य ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें प्रत्येक बालक चाहे वह विशिष्ट हो या फिर सामान्य, बिना किसी भेदभाव के एक साथ एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीकों एवं सामग्रियों के साथ शिक्षा प्राप्त करेगा। Samaveshi Shiksha के अंतर्गत सामान्य बालक, विशिष्ट बालक तथा दिव्यांग बालकों को एक साथ शिक्षा प्रदान किया जाता है। समावेशी शिक्षा सभी बालकों कोशिक्षाके अवसर प्रदान करती है।
समावेशी शिक्षा की परिभाषाएं Samaveshi Shiksha ki Paribhasha
श्रीमती आर के शर्मा के अनुसार,” शैक्षिक समावेशन से अभिप्राय उन सभी छात्रों की शिक्षा व्यवस्था से है, जो अपवंचित वर्ग, भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र, वर्ण, लिंग तथा शारीरिक एवं मानसिक दक्षता से ग्रसित हैं। इस प्रकार के छात्र प्रतिभाशाली एवं शारीरिक रूप से अक्षम दोनों रूप में हो सकते हैं”।
प्रोफेसर एसके दुबे के अनुसार,” शैक्षिक समावेशन का आशय उस शिक्षा व्यवस्था से है जो सामान्य स्तर के छात्रों से अधिक एवं निम्न मानसिक स्तर के छात्रों के लिए होती है। इसका स्वरूप छात्रों की योग्यता, क्षमता एवं स्थितियों के अनुरूप होता है।
समावेशी शिक्षा के उद्देश्य Samaveshi Shiksha ka uddeshya
1. Samaveshi Shiksha के द्वारा शारीरिक मानसिक सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े बालकों की पहचान करके उनकी उचित देखरेख का निर्देशन प्रदान किया जाता है।
2. समावेशी शिक्षा के द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बालकों की शैक्षिक ,मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समस्याओं की विवेचना करके समस्या का समाधान किया जाता है।
3. Samaveshi Shiksha के द्वारा विशिष्ट बालकों के लिए शैक्षिक कार्य योजना का निर्माण करके उसका क्रियान्वयन किया जाता है।
4. Samaveshi Shiksha के माध्यम से बालकों में जागरूकता की भावना का विकास किया जाता है।
5. शैक्षिक समावेशन की अवधारणा को समझकर विद्यालय में समावेशित वातावरण का सृजन किया जाता है।
6. Samaveshi Shiksha के द्वारा विशिष्ट बालकों की पहचान करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है।
विशिष्ट बालक ( Vishisht balak ki Shiksha)
विशिष्ट बालक से तात्पर्य ऐसे बालकों से है जो सामान्य बालकों की अपेक्षा शारीरिक, मानसिक, शैक्षिक अथवा सामाजिक दृष्टि से पर्याप्त भिन्नता रखते हैं। अर्थात ऐसे बालक जो सामान्य बालकों की अपेक्षा या तो बहुत उच्चकोटि के होते हैं या फिर बहुत निम्न कोटि के होते हैं, विशिष्ट बालक कहलाते हैं।
श्रीमती राजकुमारी शर्मा के अनुसार,” विशिष्ट आवश्यकता वाला बालक वह है, जो अंत: व्यक्तिगत भिन्नता रखते हुए अन्य सामान्य बालकों से अंतः व्यक्तिगत भिन्नता रखता है”।
क्रिक महोदय के अनुसार,” विशिष्ट बालक मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक गुणों में सामान्य बालकों से भिन्न होता है। उसकी भिन्नता कुछ ऐसी सीमा तक होती है कि उसे स्कूल के सामान्य कार्यों तथा विशिष्ट सेवाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों के लिए कुछ अतिरिक्त अनुदेशन भी चाहिए ऐसी दशा में उनकी सामर्थ्य का सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक विकास हो जाता है”।
विशिष्ट बालकों के प्रकार
(A) बौद्धिक दृष्टि से विशिष्ट बालक
1. प्रतिभाशाली बालक
2. मंदबुद्धि बालक
(B) शैक्षिक दृष्टि से विशिष्ट बालक
1. तीव्र बालक
2. पिछड़ा बालक
(C) शारीरिक दृष्टि से विशिष्ट बालक
1. श्रवण बाधित बालक
2. कम सुनने वाले बालक
3. अंधे बालक/ दृष्टिबाधित बालक
4. दृष्टि दोष से युक्त बालक
5. वाणी दोष से युक्त बालक
6. दिव्यांग बालक
(D) समस्यात्मक दृष्टि से विशिष्ट बालक
1.सामाजिकदृष्टि से कुसमायोजित बालक
2. संवेगात्मक असंतुलित बालक
प्रतिभाशाली बालक किसे कहते हैं? Pratibhashali balak ki paribhasha
प्रतिभाशाली बालकों की बुद्धि लब्धि 140 या उससे अधिक होती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति तथा विकास में उस राष्ट्र के प्रतिभावान बालक बालिकाओं का योगदान रहता है प्रतिभाशाली बालक से तात्पर्य उन बालकों से है जिनकी बुद्धि सामान्य बालकों से भिन्न होती है, प्रतिभाशाली बालक में विकास की संभावना अधिक होती हैं प्रतिभाशाली बालकों को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे- होशियार बालक, श्रेष्ठ बालक, तीव्र बालक।
प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा को विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला संगीत नेतृत्व आदि में विशिष्ट योग्यता के आधार पर भी परिभाषित किया जा सकता है।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएं
1. प्रतिभाशाली बालक का शब्द भंडार सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक होता है
2. प्रतिभाशाली बालक कठिन विषयों में भी अधिक रुचि रखता है
3. प्रतिभाशाली बालक में अमूर्त चिंतन का गुण पाया जाता है।
4. प्रतिभाशाली बालक विद्यालयी परीक्षा में अधिक अंकों से उत्तीर्ण होते हैं।
5. प्रतिभाशाली बालकों का सामान्य ज्ञान अन्य बालकों की अपेक्षा अधिक होता है।
नोट: सभी प्रतिभाशाली बालक सृजनशील बालक नहीं हो सकते हैं।
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प्रतिभाशाली बालकों की पहचान
1. विधिवत अवलोकन द्वारा
2. बुद्धि परीक्षण द्वारा
(A) सामूहिक बुद्धि परीक्षण
(B) व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
(C) उपलब्धि परीक्षण
(D) रुचि सूची परीक्षण
(E) व्यक्तित्व परीक्षण
(F) विशिष्ट योग्यता परीक्षण
मंदबुद्धि बालक
मंदबुद्धि बालक से तात्पर्य उन बालकों से है जिनकी मानसिक योग्यता सामान्य बालकों से कम होती है। मंदबुद्धि बालकों को बुद्धि परीक्षण पर दिए गए कार्यों पर परिभाषित करते हैं। मंदबुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 80 या 85 से कम होती है।
मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं
1. मंदबुद्धि बालकों में आत्मविश्वास की कमी होती है।
2. इनकी बुद्धि लब्धि 80 या 85 से कम होती है।
3. मंदबुद्धि बालकों में सीखने की गति मंद होती है।
4. मंदबुद्धि बालक जटिल परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ होते हैं।
मंदबुद्धि बालकों की पहचान
मंदबुद्धि बालकों को निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करके पहचाना जा सकता है-
1. विधिवत अवलोकन
2. प्रमापीकृत परीक्षण
3. चिकित्सकीय परीक्षण
4. उपलब्धि परीक्षण
5. व्यक्तित्व परीक्षण
6. रुचि सूची परीक्षण
पिछड़ा बालक
पिछड़ा बालक से तात्पर्य उन बालकों से है जो शिक्षा प्राप्त करने में सामान्य बालकों से पिछड़ जाते हैं। अतः जो बालक अपनी कक्षा में अन्य बालकों से अध्ययन की दृष्टि से पिछड़ जाते हैं उन्हें पिछड़ा बालक कहते हैं।
पिछड़ापन के लिए मंदबुद्धि का होना आवश्यक नहीं है। औसत या तीव्र बुद्धि का बालक भी पिछड़ा बालक हो सकता है।
पिछड़ापन के कारण
1. वंशानुक्रम
2. शारीरिक अक्षमता
3. परिवार में कलहपूर्ण एवं शोर-शराबे का वातावरण।
4. परिवार में शिक्षा का अभाव
6. बुरे मित्रों की संगति
7. अयोग्य एवं निष्ठुर अध्यापक
पिछड़े बालकों के लिए शिक्षा की व्यवस्था
1. पिछड़े बालकों के लिए निशुल्क शिक्षण सामग्री तथा छात्रवृति देने की व्यवस्था होनी चाहिए।
2. परिवारिक वातावरण में सुधार के प्रयास किए जाने चाहिए।
3. पिछड़े बालकों के लिए विशेष कक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4. ऐसे बालकों के संगी-साथियों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए।
5. पिछड़े बालकों के लिए श्रेष्ठ अध्यापक की व्यवस्था होनी चाहिए।
पिछड़े बालकों की विशेषताएं
1. पिछड़े बालकों में सीखने की गति धीमी होती है।
2. ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धि तथा परीक्षा उपलब्धि, उनकी बुद्धि की तुलना में कम होती है।
3. ऐसे छात्र कक्षा कार्य तथा गृह कार्य समुचित ढंग से नहीं कर पाते।
4. पिछड़े बालक जीवन के प्रति निराश होते हैं तथा असमायोजित व्यवहार करते हैं।
पहचान- ऐसे बालकों की पहचान उपरोक्त विशेषताओं तथा विधिवत अवलोकन एवं प्रमापीकृत विधियों द्वारा किया जा सकता है।
समस्यात्मक बालक Samasyatmak balak in hindi
समस्यात्मक बालक से तात्पर्य उन बालकों से है जो परिवार ,विद्यालय और कक्षा में भांति भांति की समस्याएं उत्पन्न करते हैं। ऐसे बालकों का व्यवहार सामान्य बालकों से हटकर होता है तथा ये बालक कक्षा या विद्यालय में अपने आप को समायोजित नहीं कर पाते हैं।
समस्यात्मक बालक अनेक प्रकार के हो सकते हैं जैसे- चोरी करने वाले बालक, क्रोध करने वाले बालक, विद्यालय से भाग जाने वाले बालक, कक्षा में देर से आने वाले बालक, गृह कार्य न करके लाने वाले बालक, भयभीत रहने वाले बालक आदि।
प्रायः बालकों की आवश्यकता पूरी न होने, अत्यधिक लाड प्यार, कठोर अनुशासन आदि के कारण बालक समस्यात्मक व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे बालकों को शारीरिक दंड न देकर मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
समस्यात्मक बालकों की शिक्षा व्यवस्था
1. ऐसे बालकों को अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहन तथा पुरस्कार देना चाहिए।
2. ऐसे बालकों के अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ सहानुभूति पूर्वक तथा सहयोगात्मक व्यवहार करना चाहिए।
3. ऐसी बालकों के साथियों पर कड़ी नजर रखना चाहिए तथा नैतिक शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
4. समस्यात्मक बालकों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहिए।
दिव्यांग बालक
दिव्यांग बालक से तात्पर्य उस बालक से है जिसमें कोई स्थाई शारीरिक दोष आ गया हो। ऐसे बालक सामान्य क्रियाओं में भाग लेने से वंचित रह जाते हैं। दिव्यांग बालकों के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. दृष्टिबाधित बालक
2. श्रवण बाधित बालक
3. वाणी दोष युक्त बालक
4 अस्थि बाधित बालक
5. शारीरिक विकृति वाले बालक
दिव्यांग बालकों में शारीरिक दोष अवश्य पाया जाता है परंतु यह आवश्यक नहीं है कि दिव्यांग बालक मानसिक दृष्टि से भी अयोग्य हो। शारीरिक दोष के कारण इन बालकों में हीन भावना पाई जाती है।
दिव्यांग बालकों के लिए शिक्षा की व्यवस्था
1. विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालय खोले जाने चाहिए।
2. चिकित्सकों से परामर्श लेकर इन बालकों के लिए चिकित्सकीय सुविधा, उपकरण तथा अन्य संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
3. हीन भावना को दूर करने के लिए माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
4. अपंग बालकों के लिए बैठने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
5. दृष्टि बाधित बालकों को ब्रेल लिपि प्रणाली के आधार पर सिखाने का प्रयास करना चाहिए।
सृजनात्मक बालक
सृजनात्मक का सामान्य अर्थ सृजन या रचना से होता है अर्थात सृजनात्मक का संबंध प्रमुख रूप से नवीनता से होता है।
सृजनात्मकता वह योग्यता है, जो व्यक्ति को किसी समस्या का विविधता पूर्वक समाधान खोजने के लिए ,नवीन ढंग से सोचने तथा विचार करने में समर्थ बनाती है।
अथवा
सृजनात्मकता वह मानसिक योग्यता है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी नवीन रचना, चिंतन तथा विचारों को प्रस्तुत करता है।
सृजनशील बालक की विशेषताएं
1. विचारों तथा अभिव्यक्ति में मौलिकता
2. अन्वेषणात्मक तथा जिज्ञासा की प्रवृत्ति
3. अभिव्यक्ति में विभिन्नता
4. दूर दृष्टिता
5. गैर परंपरागत विचारों में गति
6. स्वतंत्र निर्माण की क्षमता
7. अपसारी चिंतन की प्रवृत्ति
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