रानी पद्मावती का जीवन परिचय| Story Of Padmavati in Hindi
भारत की पावन धरती में समय-समय पर ऐसी वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनकी देशभक्ति और पराक्रम आज भी हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत है ऐसी वीरांगना महारानी Padmavati का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। रानी पद्मावती के त्याग, बलिदान और पराक्रम को देशवासी कभी नहीं भुला सकते। जिस हिम्मत और वीरता के साथ महारानी Padmavati भारत देश के लिए शौर्य की एक मिसाल बनीं, वह अद्भुत है।

राजस्थान की धरती का इतिहास राजपूतों की वीरता की गाथा से भरा पड़ा है। राजपूत वीरों के शौर्य की गाथाएं जन-जन की जुबानों पर सुनी जा सकती हैं। राजस्थान को किलों का प्रदेश भी कहा जाता है। विशेष रूप से राजस्थान का चित्तौड़गढ़, किलों के इतिहास के लिए जाना जाता है।
चित्तौड़ की महारानी Padmavati जो एक अनुपम सुंदरी तो थीं ही अपितु त्याग और वीरता की पराकाष्ठा थीं। संपूर्ण देश में अपनी सुंदरता के लिए जानी जाने वाली महारानी Padmavati को पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है।
राजा गंधर्व और रानी चंपावती की बेटी महारानी पद्मिनी का जन्म ‘सिंघल’ नामक स्थान में हुआ था। पिता गंधर्वसेन तथा माता चंपावती ने अपनी पुत्री पद्मिनी का विवाह चित्तौड़गढ़ के राजकुमार राजा रावल रतन सिंह के साथ कर दिया। ऐसा माना जाता है कि पद्मिनी के पास हीरामणि नाम का एक तोता था, जिससे वे बेहद प्यार करती थीं।
बचपन से ही पद्मिनी की सुंदरता के चर्चे होने लगे थे। सुंदर शरीर की स्वामिनी पद्मिनी की सुंदरता के बारे में कहा जाता है कि यदि वे पानी भी पीती थीं तो उनके गले के अंदर पानी साफ- साफ दिखाई देता था, अगर वे पान खाती थीं तो पान का रंग भी उनके सुंदर गले में नजर आता था।
महाराजा गंधर्वसेन ने अपनी बेटी पद्मिनी के लिए स्वयंवर आयोजित किया जिसमें देश के सभी राजपूत राजाओं को आमंत्रित किया गया। एक छोटे राज्य के राजा मलखान सिंह ने Padmavati का हाथ मांगा। चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह ने भी इस स्वयंवर में जाने का निर्णय लिया, जहां पर उन्होंने मलखान सिंह को हरा दिया और राजकुमारी पद्मिनी के साथ विवाह करके चित्तौड़गढ़ ले आए।
Rani Padmavati history in hindi [रानी पद्मावती (पद्मिनी) का इतिहास]
12वीं और 13वीं शताब्दी में सिसोदिया राजवंश का बोलबाला था, राजा रावल रतन सिंह इसी राजवंश के महान योद्धा थे। राजा रावल रतन सिंह की पद्मिनी के साथ विवाह करने से पूर्व 13 शादियां हो चुकी थीं परंतु राजा, महारानी पद्मिनी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। देश के नामी कलाकारों, संगीतकारों एवं कवियों को वे समय-समय पर सम्मानित भी किया करते थे।
चित्तौड़गढ़ में एक बहुत ही अच्छा गायक राघव चेतक भी रहा करता था, ऐसा माना जाता है कि राघव को गायकी के साथ अन्य कलाओं में भी महारथ हासिल थी। वह काला जादू का भी अच्छा जानकार था लेकिन यह बात किसी को पता नहीं थी। राघव ने इस कला का प्रयोग अपने ही राजा के खिलाफ करना चाहा पर एक दिन रंगे हाथों पकड़ा गया। राजा ने उसे दंडित करके राज्य से बाहर निकाल दिया इस कड़ी सजा से राजा के दुश्मन बढ़ गए और राघव ने राजा के खिलाफ बगावत कर दी।
अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए राघव ने दिल्ली का रुख किया ताकि वह दिल्ली के सुल्तान के साथ मिलकर राजा रतन सिंह से अपने अपमान का बदला ले सके। राघव को अलाउद्दीन खिलजी के बारे में अच्छी तरह से पता था।
वह जानता था कि सुल्तान नित्य शिकार के लिए दिल्ली के आसपास जंगल में जाता है, उसने एक तरीका निकाला और रोजाना जंगल में बैठकर बांसुरी बजाने लगा। वह सोचता था कि एक न एक दिन अलाउद्दीन खिलजी से उसकी मुलाकात होगी इसी चाह में वह नित्य बांसुरी वादन करने लगा।
कहा जाता है कि किस्मत एक न एक दिन पलटती जरूर है। राघव की किस्मत भी बदली और उसने देखा कि अलाउद्दीन शिकार के लिए आ रहा है राघव ने सुरीली आवाज में बांसुरी बजाना शुरू कर दिया।
बांसुरी की इस सु-मधुर धुन को अलाउद्दीन और उसके सैनिकों ने सुना तो वे दंग रह गए। अलाउद्दीन ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे उस व्यक्ति को ढूंढ कर लाएं जो इतनी मधुर बांसुरी बजा रहा है।
सुल्तान के सैनिक राघव को खोज कर ले आए। सुल्तान ने उसे दिल्ली दरबार में आने को कहा, चालाक राघव ने अपने आप को साधारण इंसान बताते हुए कहा कि मुझ अकिंचन को आप दरबार में क्यों बुला रहे हैं? मैं तो एक साधारण संगीतकार हूं। सुल्तान ने राघव से कहा कि वह अपनी बात को स्पष्ट करे तो राघव ने बताया कि वह चित्तौड़गढ़ का रहने वाला है और वहां पर राजा रतन सिंह की रानी पद्मिनी जो अति सुंदरी है, उसके मनोरंजन के लिए अपनी कला का प्रदर्शन करके जीविका चलाता है।
महारानी पद्मिनी की सुंदरता का वर्णन राघव इस प्रकार करता है कि सुल्तान उत्तेजना से भर जाता है। सुल्तान सोचता है कि यदि चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया जाए तो हमें दोहरा फायदा होगा। धन-दौलत के साथ ही अनुपम सुंदरी भी हमें मिल जाएगी और रानी पद्मावती हमारे महल की शोभा बढ़ाएगी।
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राघव द्वारा बखान किए गए महारानी Padmavati के सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध होकर सुल्तान चित्तौड़गढ़ पर हमला करने की योजना बनाता है। चित्तौड़गढ़ की चाक-चौबंद व्यवस्था देख कर वह निराश हो जाता है लेकिन पद्मावती उसके दिल में बलवती होने लगती है। सुल्तान, राजा रावल रतन सिंह को संदेश भेजता है कि वह महारानी पद्मावती को देखना चाहता है और यह भेंट भाई बहन की होगी।
राजपूतों के लिए यह अपमान की बात थी कि कोई बाहरी व्यक्ति महारानी से मिले जो हमेशा पर्दे में रहती है लेकिन सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की ताकत से भली-भांति परिचित राजा रतन सिंह यह बात मान लेता है लेकिन यह शर्त रखता है कि सुल्तान उन्हें सीधे नहीं देख सकते बल्कि आईने में उनके प्रतिबिंब को देख सकते हैं।
सुल्तान, राजा रतन सिंह कि इस बात को मान लेता है। इस मुलाकात के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं और अंततः सुल्तान को कक्ष में प्रवेश कराया जाता है। महारानी पद्मावती को दर्पण में देखकर अलाउद्दीन खिलजी उनकी सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो जाता है और मन ही मन यह ठान लेता है कि वह किसी भी दशा में महारानी पद्मिनी को हासिल करके ही रहेगा।
सुल्तान को विदा करने के लिए राजा रावल रतन सिंह उसके साथ ही आते हैं। खिलजी मौके का फायदा उठाकर राजा को अगवा कर लेता है और बदले में रानी पद्मावती की मांग करता है। राज्य की प्रजा को बचाने और अपने पति की प्राण रक्षा के लिए रानी सुल्तान के पास जाने के लिए तैयार हो जाती हैं।
अपने सेनापति के साथ योजनाबद्ध ढंग से रानी 150 पालकियों साथ खिलजी के शिविर की तरफ प्रस्थान करती हैं। खिलजी के सैनिक जब ये देखते हैं तो उन्हें लगता है कि रानी इन्हीं पालकियों में बैठकर आ रही है।
जैसे ही पालकियां शिविर के पास पहुंचती हैं तो प्रत्येक पालकी से एक वीर सैनिक निकलता है और अपने पौरूष तथा पराक्रम से खिलजी के सैनिकों को पराजित करके राजा रावल रतन सिंह को सही सलामत किले से वापस ले आते हैं।
अपनी हार से बौखलाया खिलजी, चित्तौड़ पर हमला कर देता है और राजा रतन सिंह के किले की जबरदस्त घेराबंदी कर देता है इस घेराबंदी से किले के अंदर खाने पीने की समस्या उत्पन्न हो जाती है किले पर मचे हाहाकार को देखकर राजा रतन सिंह अत्यंत दुखी हो जाते हैं और अंततः वे किले के दरवाजे को खोलने का आदेश दे देते हैं।
दरवाजा खुलते ही खिलजी के सैनिक, रतन सिंह के सैनिकों पर टूट पड़ते हैं। राजा रावल रतन सिंह के वीर सैनिक दुश्मनों को पीठ दिखाने के बजाय वीरता पूर्वक युद्ध करके वीरगति प्राप्त करना उचित समझते हैं, इसके चलते वे मरते दम तक लड़ने का संकल्प लेते हैं। रानी पद्मावती राजा के इस फैसले से हताश हो जाती हैं।
वीर क्षत्राणी महारानी पद्मावती ने यह विचार किया कि वे अपने जीते जी किसी पराए पुरुष के साथ नहीं रह सकती। इसलिए रानी पद्मावती जौहर व्रत लेती हैं।
23 अगस्त 1303 को महारानी Padmavati के साथ किले की सभी वीर क्षत्राणियां आग में कूदकर जौहर व्रत पूर्ण करती हैं। रानी अपनी पवित्रता का प्रमाण देते हुए सैकड़ों नारियों के साथ आग में कूदकर आत्मदाह कर लेती हैं।
इस तरह महारानी पद्मावती पवित्र होने के साथ-साथ एक वीर क्षत्राणी होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर हो जाती हैं।