सुभाष चंद्र बोस कैसे बने एक महान क्रांतिकारी
सुभाष चंद्र बोस इतिहास की वो शख्सियत जिसके बारे में अक्सर अधूरी बात की जाती है, जिनके जय हिंद के नारे की गूंज आज भी हर किसी के जुबां पर है और जिन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाली ‘आजाद हिंद फौज’ की कमान संभाली वो हैं देश के महान क्रांतिकारियों में शुमार सुभाष चंद्र बोस।
उन्होंने देश के लिए जो किया उसे लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत पर मौत के रहस्य का पर्दा आज भी बना हुआ है। नेताजी ने हमेशा यही कहा कि “दुनिया में सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है”। उन्होंने राष्ट्रवाद और मानव जाति के उच्चतम आदर्श ‘ सत्यम शिवम सुंदरम’ को सर्वोच्च माना।
नेता जी ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे नारों से संपूर्ण सैन्य शक्ति को हिला कर रख दिया। आज के इस लेख में हम बात करेंगे देश की आजादी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत और उनके योगदान के बारे में-
सुभाष चंद्र बोस यानी गुलाम भारत की एक ऐसी शख्सियत जिन्होंने न सिर्फ देश के अंदर बल्कि देश के बाहर भी आजादी की लड़ाई लड़ी। राष्ट्रीय आंदोलन में नेताजी का योगदान कलम चलाने से लेकर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करके अंग्रेजों से लोहा लेने तक रहा है।
चितरंजन दास से मुलाकात
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने कॉलेज के शुरुआती दिनों में ही बंगाल में क्रांति की वह मशाल जलाई जिसने भारत की आजादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी।
ICS की नौकरी छोड़ कर लंदन से भारत लौटने के बाद नेताजी की मुलाकात देशबंधु चितरंजन दास से हुई। उन दिनों चितरंजन दास ने फॉरवर्ड नाम से एक अंग्रेजी अखबार शुरू किया था। सुभाष चंद्र बोस से मिलने के बाद चितरंजन दास ने उनको फॉरवर्ड अखबार का संपादक बना दिया।
नेताजी उस अखबार में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जोर-शोर से लिखकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ माहौल तैयार कर रहे थे। कलम से शुरू की गई इस मुहिम की वजह से नेताजी को वर्ष 1921 में 6 महीने की जेल भी हुई।
कलकत्ता की सड़कों पर किया परेड: नेता जी ने वर्ष 1928 में कोलकाता की सड़कों पर सेना की वर्दी में 2000 भारतीय युवकों के साथ परेड कर ब्रिटिश खेमे को हिला कर रख दिया।
हरिपुरा अधिवेशन में नेताजी का योगदान
1938 में हुए हरिपुरा अधिवेशन में नेता जी कांग्रेस के प्रमुख बनाए गए। नेता जी ने कांग्रेस को आजादी की तारीख तय करने के लिए कहा। साथ ही तय तारीख तक आजादी नहीं मिलने पर सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजो के खिलाफ जोरदार आंदोलन छेड़ना चाहते थे। लेकिन महात्मा गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए। आखिरकार नेताजी ने कांग्रेस को छोड़ना ही उचित समझा, फलस्वरूप 22 जून 1939 को नेता जी ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की।
जर्मनी से ली मदद
क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से प्रभावित होकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजादी की लड़ाई के लिए विदेशी मदद जुटाने की ठान ली थी। कोलकाता में पुलिस की नजरबंदी को चकमा देकर सुभाष चंद्र बोस काबुल के रास्ते जर्मनी में दाखिल हुए।
जर्मनी में उनकी मुलाकात एडोल्फ हिटलर से हुई। जिसने ब्रिटिश हुकूमत को कमजोर करने के लिए नेताजी को हर संभव मदद मुहैया कराने का वादा किया। नेताजी को विश्वास था कि भारत की आजादी तभी संभव है जब ब्रिटेन पर विश्व युद्ध के वक्त ही निशाना साधा जाए। इसी कड़ी में उन्होंने इटली और जर्मनी में कैद भारतीय युद्ध बंदियों को आजाद करवाकर एक मुक्त सेना भी बनाई।
आजाद हिंद फौज के नेतृत्व की जिम्मेदारी
वर्ष 1943 में नेताजी जब जापान पहुंचे तब उन्हें कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज के नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई। उनका चुनाव खुद रासबिहारी बोस ने ही किया था।
ब्रिटिश सेना पर हमला
आजाद हिंद फौज ने फरवरी 1944 में ब्रिटिश सेना पर हमला कर दिया। पलेल और तिहिम समेत कई भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा दिया था। सितंबर 1944 के शहीद दिवस के भाषण में नेताजी ने आजाद हिंद के सैनिकों से कहा था “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”।
23 अगस्त 1945 को नेताजी की मृत्यु ताइवान में एक विमान दुर्घटना के फलस्वरूप हो गई। इस विमान हादसे में पायलट दल समेत कई लोग मारे गए थे। परंतु अभी तक इस हादसे की आधिकारिक पुष्टि नहीं की जा सकी है। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु एक रहस्य बन कर रह गई है। अधिकांश लोग यह मानते हैं की सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु महज एक साजिश थी।