विषाणु क्या है?
आज के इस आर्टिकल में हम विषाणु क्या है? से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे। इसके साथ ही हम विषाणु से फैलने वाले रोगों ( Virus से होने वाले रोग hindi me) के बारे में विस्तारपूर्वक जानेंगे तो आइए सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास करते हैं कि विषाणु क्या है?
विषाणु कोशिका विहीन अत्यंत सूक्ष्म जीव होते हैं। ये इतने सूक्ष्म होतेे हैं कि इन्हें देेखने के लिए माइक्रोस्कोप की सहायता लेनी पड़ती है। विषाणुुु को सजीव तथा निर्जीव के बीच की कड़ी कहा जाता है।
क्या विषाणु प्रजनन करता है?
विषाणु वैसे तो प्रजनन नहीं करते परंतु ये किसी भी जीवित कोशिका में प्रवेश करने के बाद प्रजनन करने लगते हैं। विषाणु को क्रिस्टलों की भांति बोतलों में बंद करके लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वायरस का यह गुण , इसके निर्जीव लक्षण को व्यक्त करता है।
विषाणु जनित रोगों के नाम
विषाणु जनित रोगों के नाम निम्नलिखित है-
1. चेचक (बड़ी माता)
2. खसरा
3. छोटी माता
4. इनफ्लुएंजा
5. पोलियो
6. हेपेटाइटिस
7. एड्स
8. डेंगू ज्वर
9. चिकनगुनिया
चेचक
एक समय में यह रोग हमारे देश का अत्यंत तीव्र, घातक संक्रामक रोग था। उस समय देश में असंख्य बालक इस रोग से मर जाया करते थे लेकिन आज टीके के उपयोग से इस रोग की पर्याप्त रोकथाम हो गई है परंतु अब भी देश में मुख्य रूप से गांवों में चेचक का प्रभाव एवं प्रकोप दिखाई देता है। यह रोग वैरिओला वायरस द्वारा फैलता है।
चेचक रोग के लक्षण-
1. तेज बुखार, शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं।
2. सिर और पीठ में तीव्र दर्द, कपकपी, वमन और मुख लाल हो जाता है।
3. दाने निकलने के पांचवें या छठवें दिन उनमें एक प्रकार का द्रव जैसा पदार्थ भर जाता है।
4. प्रत्येक दाना ऊपर उठा हुआ छाले के सामान पारदर्शी एवं चमकदार होता है।
चेचक रोग की रोकथाम एवं उपचार-
चेचक रोग से बचने के लिए आप निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं?
1. सबसे प्रमुख उपाय यह है कि 6 माह की आयु से पूर्व ही शिशु को चेचक के टीके लगवा दिए जाएं।
2. जिन स्थानों पर रोक का प्रकोप हो, वहां भी इनके टीके लगवा दिए जाएं।
3. चेचक के रोगी को परिवार के सदस्यों से अलग कमरे में रखा जाए।
4. रोगी द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली प्रत्येक वस्तु जैसे- पहने गए वस्त्र, बिस्तर एवं बर्तन आदि का पूर्णतया विसंक्रमण कर दिया जाए।
5. रोगी के मल-मूत्र एवं थूक आदि को जला दिया जाए।
6. रोगी को यथासंभव बिस्तर पर विश्राम करने दिया जाए।
7. इस रोग में पेट साफ रखना अत्यंत आवश्यक है इसलिए रोगी को तरल एवं हल्का भोजन दिया जाए।
8. पीट एवं टांगो के दर्द को रोकने के लिए सिकाई करनी चाहिए।
9. रोगी को खुजाने नहीं दिया जाए।
यह भी पढ़ें-
खसरा
खसरा एक विषाणु जनित रोग है। रोगी या उसकी वस्तुओं के संपर्क में आने के कारण यह रोग अन्य लोगों पर फैल जाता है।
यदि इस रोग के प्रारंभिक चरण पर ध्यान न दिया जाए तो इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। कई बार यह रोग महामारी का रूप भी धारण कर लेता है।
खसरा रोग फैलाने वाले विषाणु का नाम मोर्बिली वायरस है।
संप्राप्ति काल- 8 से 14 दिन
खसरा रोग के लक्षण-
खसरा रोग के लक्षण निम्नलिखित है-
1. प्रारंभ में साधारणतः जुकाम और सिर दर्द होता है।
2. धीरे-धीरे रोगी अस्वस्थ होने का अनुभव करता है और उसे ज्वर चढ़ने लगता है।
3. आंख और नाक से पानी बहने लगता है।
4. गले और नाक पर सूजन आ जाती है
5. चौथे दिन शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं, दाने कुछ अर्धचक्र चंद्राकार होते हैं।
खसरा रोग का उपचार एवं रोकथाम-
खसरा रोग का उपचार एवं रोकथाम निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
1. रोगी को स्वच्छ एवं वायु युक्त कमरे में रखा जाए परंतु कमरा अधिक ठंडा नहीं होना चाहिए।
2. रोगी को यथासंभव ठंड से बचाया जाए।
3. जुकाम और खांसी के लक्षण प्रकट होने पर तेल मलकर मालिश करनी चाहिए।
4. यदि आंखों में पीड़ा हो तो आंखों को बोरिक एसिड के घोल से धोना चाहिए।
छोटी माता
यह रोग प्रायः बालकों में होता है। चेचक के समान यह रोग भी संक्रामक तथा विषाणु जनित है, परंतु इसे असाध्य नहीं कहा जा सकता। यह नाक तथा कंठ में पाए जाने वाले वायरस के कारण होता है। ये विषाणु श्वास तथा वायु द्वारा अन्य व्यक्तियों तक पहुंच जाते हैं।
छोटी माता रोग फैलाने वाले विषाणु का नाम वैरिसेला वायरस है।
संप्राप्ति काल (Incubation Period) –
यह रोग 12 से 19 दिन तक चलता है किंतु संक्रमण काल 21 दिन तक होता है।
छोटी माता (Chickenpox) रोग के लक्षण-
1. इस रोग में प्रारंभ में हल्का बुखार आता है।
2. दाने निकलने लगते हैं, तथा ये दाने पहले धड़, बाद में हाथ, मुंह तथा सिर आदि में फैल जाते हैं।
3. बाद में इन दानों में फफोले पड़ जाते हैं और ये फफोले फूट जाते हैं।
4. 7- 8 दिन में इन पर पपड़ी पड़ जाती है।
छोटी माता रोग की रोकथाम-
1. रोग का पता चलते ही रोगी को अलग कमरे में रखा जाए।
2. बुखार होने पर भोजन कम दिया जाए
3. दानों में होने वाली खुजली के लिए मरहम का प्रयोग करें।
4. रोगी के दानों की पपड़ी को जला देना चाहिए।
इनफ्लुएंजा
इनफ्लुएंजा एक विषाणु जनित रोग है। यह रोग मिक्सो वायरस (ABC) के कारण फैलता है। इस रोग में गलशोथ, छींक और बेचैनी जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। यह रोग कभी-कभी महामारी का रूप धारण कर लेता है।
इन्फ्लूएंजा रोग के लक्षण-
इन्फ्लूएंजा रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. आंख एवं नाक से पानी बहता है तथा संपूर्ण शरीर में बेचैनी रहती है।
2. प्रारंभ में जुकाम होता है इसके पश्चात सिर दर्द, ठंड ,बुखार, छींके, खांसी, नाक एवं कमर में दर्द आदि शुरू हो जाता है
3. कभी-कभी नाक से सांस लेना भी कठिन हो जाता है।
इन्फ्लूएंजा की रोकथाम के उपाय-
1. रोगी को गर्म बिस्तर पर रखना चाहिए और उसे ठंड से बचाना चाहिए।
2. यदि रोगी को निमोनिया के लक्षण दिखाई दें तो उसे तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए।
3. रोगी को तरल भोजन देना चाहिए।
4. सिर दर्द के लिए माथे पर बर्फ की थैली रखनी चाहिए परंतु रोगी को अधिक ठंड से बचाना चाहिए।
पोलियो
संसार के सभी भागों के लोग पोलियो या बाल पक्षाघात के विषय में जानते हैं। जर्मनी में हाइन (Hiene) ने सन 1840 में चिकित्सकीय वर्णन करते हुए इस रोग के विषय में बताया।
पोलियो रोग के कारण-
यह केंद्रीय स्नायु मंडल का संक्रमण है,यह एक प्रकार के विषाणु द्वारा होता है। जो मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली स्नायु कोशिकाओं पर आक्रमण कर देते हैं।
सामान्यतः इस रोग में हाथों और पैरों की मांसपेशियों पर अतिरिक्त प्रभाव पड़ता है इस रोग के कारण सांस लेने वाली मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती है।
पोलियो रोग के लक्षण-
ज्वर, बदन में दर्द, रीड की हड्डी तथा आंत की कोशिकाओं का नष्ट हो जाना।
पोलियो रोग का उपचार-
1. प्रवेश में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना तथा सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था करना।
2. सांस से निकलने वाले पदार्थ , मल तथा मिट्टी लगी वस्तुओं को कीटाणु रहित करें।
3. भोजन करने से पहले और रोगी की सेवा के पश्चात हाथ अवश्य धो लें।
4. पोलियो के ड्रॉप्स सरकार द्वारा मुफ्त प्रदान किए जाते हैं अतः उनको अवश्य पिलाया जाए।
5. संक्रमण ग्रस्त बालकों को 3 सप्ताह तक विद्यालय नहीं भेजना चाहिए।
हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस एक संक्रामक एवं विषाणु जनित रोग है इस रोग से प्रभावित होने वाला अंग यकृत है।
हेपेटाइटिस का संक्रमण- हेपेटाइटिस का संक्रमण शरीर में दूध एवं पानी के द्वारा फैलता है। इसका उद्भभवन काल 1 माह से 3 माह तक है।
संक्रमण के स्रोत- इस रोग का संक्रमण निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है-
1. खून चढ़ाना (Blood Transfusion)
2. दूषित सुइयों का प्रयोग (Infected needles)
3. दवाइयों का दुरुपयोग (Misuse of medicine)
4. अप्राकृतिक यौन गतिविधि या समलैंगिकता (Unnatural Sexual activity or Homosexuality)
हेपेटाइटिस रोग के लक्षण
1. पेशाब गाढ़ा पीला और मल भी चाक मिट्टी जैसा पीला आने लगता है।
2. तीन या चार दिन के बाद यकृत बढ़ जाता है।
3. सामान्य बुखार, कँपकँपी, सिर दर्द, मितली एवं वमन आने लगता है।
4. इस रोग में 7 या 10 दिनों के बाद पीलिया कम होने लगता है।
5. तीन- चार सप्ताह में रोगी पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है।
6. केवल 10% और लोग पुनः इसके शिकार हो सकते हैं।
सावधानियां एवं उपचार-
1. भीड़भाड़ वाले वातावरण, दूषित जल तथा अस्वच्छ परिस्थितियों में बदलाव लाना चाहिए।
2. रोगी का भोजन उच्च कैलोरी युक्त (कम से कम 2500 कैलोरी) वाला होना चाहिए।
3. रोगी के भोजन में फलों का रस, ग्लूकोस पेय, टाफियाँ तथा बिस्कुट होने चाहिए।
4. गांवों में पीलिया रोग से ग्रसित व्यक्ति को मिश्री, मिठाई तथा गुड़ आहार के रूप में प्रदान किया जाता है।
एड्स
एड्स का पूरा नाम Acquired Immune deficiency syndrome है। एड्स रोग मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने से मनुष्य के शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग आ जाते हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है। जिससे व्यक्ति लंबे समय तक रोग से ग्रसित रहता है।
एड्स के विषाणु का नाम एचआईवी (Human immuno deficiency virus) है।
एड्स रोग की शुरुआत सर्वप्रथम अफ्रीका में पाए जाने वाले बंदरों से हुई। बंदरों से संपर्क के कारण यह रोग मानवों में भी गया।
अफ्रीका की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग यूरोपीय देशों में स्थानांतरित हुआ है, अतः परिणामस्वरूप इस रोग का भयंकर रूप से संक्रमण हुआ है।
एड्स रोग फैलने के कारण-
एक्स रोग फैलने के कारण निम्नलिखित हैं-
1. असुरक्षित यौन संबंध
2. संक्रमित सुई या संक्रमित ब्लेड का प्रयोग।
3. संक्रमित खून चढ़ाना
4. संक्रमित माता द्वारा उससे गर्भस्थ शिशु में
5. मादक द्रव्यों की आदत
एड्स रोग के लक्षण –
1. एक महीने तक लगातार वजन में कमी
2. लंबे समय तक बुखार रहना
3. निरंतर खाँसी का आना।
4. त्वचा पर निरंतर खुजली
5. साधारणीकृत ग्रंथियों का बढ़ना
उपचार- एड्स रोग को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता परंतु यदि रोगी नियमित दिनचर्या का पालन करें तो वह एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर सकता है। आधुनिक दौर में एड्स से निजात पाने के लिए विभिन्न प्रकार की वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा है।
डेंगू
डेंगू एक उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग है। इसे हड्डी तोड़ बुखार के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग एडीज एजेप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। अनेक मामलों में यह रोग जानलेवा रूप भी ले सकता है।
डेंगू के लक्षण-
डेंगू रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. इस रोग में अचानक तीव्र ज्वर के साथ सिर दर्द होता है।
2. मांसपेशियों तथा जोड़ों में भयानक दर्द होता है जिसके चलते इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं।
3. शरीर में लाल चकत्ते बन जाते हैं जो सबसे पहले पैरों पर, फिर छाती पर तथा कभी-कभी समस्त शरीर पर फैल जाते हैं।
4. इस रोग में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है जिससे यह रोग जानलेवा हो सकता है।
5. अत्यधिक ज्वर के कारण शरीर में रक्त स्राव होना प्रारंभ हो जाता है जिससे रक्त की कमी भी हो जाती है।
6. सही प्रकार से उपचार संभव न होने की दशा में रोगी की मृत्यु तक हो जाती है।
चिकनगुनिया
चिकनगुनिया लंबे समय तक चलने वाला जोड़ों का रोग है। इस रोग में जोड़ों पर भारी दर्द होता है। इस रोग का उग्र चरण 2 से 5 दिन के लिए चलता है किंतु जोड़ों का दर्द महीनों तक बना रहता है।
चिकनगुनिया विषाणु एक “अरबो विषाणु” है जिसे अल्फा विषाणु परिवार माना जाता है। इस वायरस का प्रवेश एडीज मच्छर के काटने से होता है।
यह विषाणु (वायरस) ठीक उसी लक्षण वाली बीमारी उत्पन्न करता है जिस प्रकार की स्थिति डेंगू रोग में होती है।
चिकनगुनिया के लक्षण-
चिकनगुनिया के लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. इस रोग में अत्यधिक ज्वर (102.3 फा.) तथा हाथों एवं पैरों में चकत्ते बन जाते हैं।
2. शरीर के विभिन्न जोड़ों में पीड़ा होने लगती है।
3. इस रोग में सिर दर्द, प्रकाश से भय लगना, आंखों में पीड़ा भी होती है।
3. चिकनगुनिया के अन्य लक्षणों में अनिद्रा तथा निर्बलता भी सम्मिलित हैं।
चिकनगुनिया के उपचार-
इस रोग का कोई ठोस उपचार नहीं है न ही इसके विरुद्ध कोई टीका मिलता है।
क्लोरोक्वीन नामक औषधि का प्रयोग आधुनिक दौर में चिकनगुनिया से निजात पाने के लिए किया जा रहा है। इसका प्रयोग एक एंटीवायरल एजेंट के रूप में किया जाता है।
इस रोग में पीड़ा की दशा गठिया रोग के समान होती है तथा दर्द को एस्प्रिन से समाप्त नहीं किया जा सकता। इसीलिए क्लोरोक्वीन फास्फेट की खुराक रोगी को दी जाती है।
केरल में लोगों द्वारा शहद- चूना मिश्रण का प्रयोग इस रोग से निजात पाने के लिए किया जाता है।